Wednesday, December 30, 2020

किसानों की मनोदशा

आज तक कोई पूर्णरूप से किसान की या ईश्वर की व्याख्या नहीं कर पाया है..

किसानों की इस आवाज का कुछ विशेष राजनितिक दल राजनीतिकरण कर रहे हैं, अपनी राजनितिक रोटियां सेंकने में मशगूल ये दल शायद ये भूल गए हैं की इस देश का अस्तित्व ही किसानी से है और उनसे गद्दारी सही नहीं है ।

खैर ! कुछ शब्द हैं जो मैंने किसानों की मनोदशा को समझाने के लिए संजोये हैं ,

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वाह रे,

दुनिया वालो हम तेरी सोच को सलाम करते है,

जो कल तक किसान को भगवान मानते थे,

आज वहीं लोग भगवान को सड़कों पे लाकर खड़ा कर दिया…..

भगवान का घोर अपमान हो रहा है

अब ये कैसा घोर अनर्थ,

कैसा घोर - कलियुग आ गया,

किसानों के सर पर कितना बड़ा तूफान आ गया है

ये जो किसान सड़कों पे हैं

उन सब ने मिट्ठी की क़सम खाई है

और खेतों से वादा किया है कि अब

जीत होगी तभी लौट कर आएंगे,

अब जो तानाशाह आ ही गए हैं तो यह भी सुनो,

हम किसान झूठे वादों से ये टलने वाले नहीं है,

तुम से पहले भी कई तानाशाह आए थे

उन्होंने भी बहुत कोशिश की सारे खेतों का कुंदन,

बिना दाम के अपने उस्ताद के नाम गिरवी रखें,

हम किसानो ने जो पनाह दी और

हम किसानो ने तुम्हे जो गद्दी पे बैठाया तो,

तुम ने सोचा की तुम यहाँ के राजा हो,

तुम को किस ने ये हक़ दिया,

कि हम किसानो की खून - पसीने की कमाई और मेहनत से हम किसानो की क़िस्मत लिखो,

और लिखते रहो.........

जो कल तक किसान देवता, किसान भगवान है

और उस भगवान को अपने खेतों के मंदिर की दहलीज़ को छोड़ कर

आज सड़कों पे लाकर खड़ा कर दिया….

सर-ब-कफ़, अपने हाथों में परचम लिए

सारी तहज़ीब-ए-इंसान का वारिस है जो

आज सड़कों पे लाकर खड़ा कर दिया

हाकिमों जान लो। तानाशाहों सुनो

अपनी क़िस्मत लिखेगा वो सड़कों पे अब

काले क़ानून का जो कफ़न लाए हो

धज्जियाँ उस की बिखरी हैं चारों तरफ़

इन्हीं टुकड़ों को रंग कर धनक रंग में

आने वाले जमाने का इतिहास भी

शाहराहों पे ही अब लिखा जाएगा।

तुम  ने उस भगवान को आज सड़कों पे लाकर खड़ा कर दिया..
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याद

 कहाँ चले गये तुम, बहुत याद आती है तुम्हारी,

साल (2020) भी बीतने वाला है,

छोटी सी बात को दिल पे लगा के कहाँ चले गये तुम,


तुम्हारे जाने से में बहुत उदास हूँ,

चहल - पहल है चारों ओर पर दिल में रुस्वाई है,

कुछ तो कहा होता हमसे बिना कुछ कहे कहाँ चले गये तुम,

क्या ये बेबसी है, कि तुम ने मुझे शिकायत का भी मौका तक न दिया,

लड़ते थे, झगड़ते थे पर प्यार तो बहुत था,

ना कोई मौका दिया हमको पास आने का, ना कोई वजह बताई मुझसे दूर जाने की,

अरे ऐसे कैसे कोई तन्हा छोड़ कर जाता है,

रूठने और मनाने का जो मौसम जो हर पल आता था

उन प्यार भरे मौसमों को छोड़ के तुम कहाँ चले गये,

क्या गुनाह किया मैंने, क्या गलती हुई थी,

मुझ से जो इतनी बड़ी सजा दी मुझे,

क्या चाहते थे तुम एक बार बताते तो सही,

यूं तनहाइयों में कैद कर भूलकर प्यार का नया नाम देते है,

तुम अब पास आ जाओ, नए साल की तरह,

पुराने साल में पुरानी यादो दफना कर, नए साल की शुरुआत करते है

छोड़ हज़ारों गम को, भूलकर प्यार का नया नाम देते है,

कहाँ चले गये तुम यूँ बिन कुछ कहे |

जल्दी से आ जाओ नए साल की जैसे,

मेरी खुशीओ को चार चाँद लगा दो, कहाँ चले गये तुम.......

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एक वक़्त वो भी था

पिछले साल की बात 2020 का एक वक़्त वो भी था,

एक वक़्त वो भी था, जब हम अजनबी हुआ करते थे,

एक वक़्त वो भी था, जब वो अजनबी हो कर भी अपना सा लगा करता था,

एक वक़्त वो भी था, जब मेरी आंखें सिर्फ तुम्हे ही ढूंढा करती थी, .

एक वक़्त वो भी था, जब तुम्हे न देखो तो दिल में बहुत बेचैनी सी हुआ करती थी,

एक वक़्त वो भी था, जब सिर्फ आँखों ही आँखों से बात हुआ करती थी,

एक वक़्त वो भी था, जब तुम्हारी एक झलक देख कर, मै एक बड़ी सी स्माइल किया करती थी

एक वक़्त वो भी था,  जब दिल तुम से बात करने के लिए बेचैन रहता था,

एक वक़्त वो भी था,  जब दिन - रात फोन कॉल पर लगे रहते थे, फिर भी हमारी बाते ख़त्म नहीं होती थी,

एक वक़्त वो भी था,  जब ऑफिस टाइम में भी हम दोनो फेसबुक पर एक दूसरे को टेक्स्ट मैसेज (Text message) किया करते थे,

एक वक़्त वो भी था,  जब दिल सिर्फ तुम को ही याद किया करता था,

एक वक़्त वो भी था, जब ख्वाबों, ख्यालो में भी तुम्हारा नाम आता था,  .

एक वक़्त वो भी था, जब हर दुआ में तुम्हारा नाम शामिल होता था

एक वक़्त वो भी था, जब तुम्हे खुदा से माँगा जाता था

एक वक़्त वो भी था, जब तुम्हारे ऑनलाइन(Online) आने का घंटों(hours) वेट(wait) किया जाता था

एक वक़्त वो भी था, जब तुम्हें फेसबुक (Facebook) और व्हाट्सएप(Whatapp) पर ऑनलाइन देख कर……

मानो दुनिया की सारी खुशियां ही मिल गयी हों,

एक वक़्त वो भी था, मानो ऐसा लग रहा था रब ने मेरी सुन ली हो,

एक वक़्त वो भी था, जब हम फ्रेंड्स(friends) बन गए थे

एक वक़्त वो भी था, जब हम दोनों ने प्यार का इज़हार कर दिया था,

एक वक़्त वो भी था, जब फ़ोन पे घंटों बात हुआ करती थी

एक वक़्त वो भी था, जब सुबह, तुम्हारी फोटो देख के होती थी

एक वक़्त वो भी था, जब तुम्हारी एक ही फोटो को सौ - सौ बार देखा जाता था

एक वक़्त वो भी था, जब एक दिन भी उसकी फोटो देखे बिना रहा नहीं जाता था

एक वक़्त वो भी था, जब दो मिनट बात करके भी दिन भर खुश रहा जाता था

एक वक़्त वो भी था, जब सिर्फ मै बोलती रहती थी और वो सुनता रहता था

एक वक़्त वो भी था, जब सिर्फ उसके दिल की सुनी जाती थी

एक वक़्त वो भी था, जब दिलो और दिमाग पर सिर्फ तुम्हारा ही राज होता था

एक वक़्त वो भी था, जब उसकी फोटो न देखो तो दिन सूना - सूना सा लगता था

एक वक़्त वो भी था, जब मै अपनी बातों से तुम्हें बोर किया करते थी और उसका रिप्लाई हाँ(haaaa)

हूँ (huuu) हम्म (hmmmmm)  में ख़त्म हो जाया करता था,

एक वक़्त वो भी था, जब तुम्हारे और मेरा रास्ता अलग हो गया था

और एक आज का वक़्त है.. (आज का वक़्त इस साल की बात 2021) जब तुम्हारे पास होने या पास न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता,

और न ही दिल में तुम्हारे पास मेरे लिए कोई जगह नहीं है अब हम फिर से अजनबी हो चुके हैं.. 

Happy New Year 2021 अगर आपको हमारी पोस्ट पसंद आई है तो आप कमेंट करके बता सकते है आप हमारी पोस्ट अपने दोस्तों से भी शेयर कर सकते है और शेयर करके अपने दोस्तों को भी इसके बारे में बता सकते है | हम फिर नई कविता लेकर हाज़िर होंगे तब तक के लिए नमस्कार दोस्तों ! आपका दिन मंगलमय हो |

Saturday, December 26, 2020

आप वही हो ना, जिसे कोई कॉल नहीं करता

आप वही हो ना जिसे कोई कॉल नहीं करता,

फिर भी मोबाइल(Mobile)को साइलेंट(Silent) पर रखते हो,

No No Don't scroll down I'm talking to you…..

Why????????

मुझे जानना है ऐसा क्यों ?

हां मुझे कोई फोन नहीं करते क्यूंकि मैंने किसी को इतना हक़ नहीं दिया है….

ये हक सिर्फ मैंने अपने Pagel के सिवा किसी को नही दिया।

उन दिनों की बात थी, जब हम दोनों मिले थे सबकी नज़रों के सामने, थोड़ा सा घबराना, थोड़ा सा शर्माना, दोनों एक जगह साथ बैठकर बातें करते हुए

चाय की चुस्कियां लेते पता नही चला कब शाम हो गई।

यूं तो तमाम उलझने थी हमारी जिंदगियों में,

शायद उन उलझनों को मिटाने का वादा था,

इसलिए भगवान ने हम दोनों को मिलाया था,

उसकी बातों पर खूब हंसी आती थी मुझे,

उसकी आंखो में एक अजीब सी चमक, अजीब सा जादू था,

जिस में मुझे सारी दुनिया दिख जाती थी,

उसके साथ जन्म-

जन्मांतर का साथ निभाने कसमें,

उसके साथ बूढ़े हो जाने की चाहत बढ़ते जाना,

पता नही था किस उलझन में फंसते जाना,

मैं कभी तन्हाई में खुद से सवाल करता था,

उसकी आवाज़ गूंजती थी हर दिल के कोने में,

अब टिक-टिक करती घड़ी का दिलासा,

मेरी किताबों में रखे वो गुलाब के फूल,

मुझे हर दिन, हर इक पल, उसकी याद दिलाती,

पर पता नहीं वो कहाँ खो गई

उसकी तस्वीरो से तमाम बातें करता,

मिलेगी वो कभी, ये ऐतबार करता,

अब बस मैं उसके फोन का अब भी इन्तजार करता।।

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Anu Mehta's Diary

मै माँ हूँ ( I am Mother)

  मै माँ हूँ मैं बेहतर से जानती हूँ मेरा नाम अनु मेहता हूं ,  मैं भी के माँ हूँ मेरी बेटी भी  15  महीने की है …. कोविड -19  ( कोरोना वायरस )...